दुसरे विश्व युद्ध के अंत के बाद [१९४५] दुनिया भर में पश्चिमी साम्राज्य के वर्चस्व का भी अंत हुआ। इसडी-कोलोनिज़शन की प्रक्रिया ने उत्तर अफ्रीका से लेकर पूर्वी एशिया तक लगभग चालीस नये देश आज़ाद होकरस्थापित हुए।
उत्तर अफ्रीका - मध्य एशिया और दक्षिण एशिया में कई ऐसे नए राष्ट्र स्थापित किए गए जो की पुरी तरह से फर्जीराष्ट्र थे। [अंग्रेज़ी में इन्हें - artificial states - कहते है]। ये देश एक पश्चिमी रण निति के अंतर्गत बनाये गए थे जोआज तक कायम है।
अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन इस नए रण निति के निर्माता और निर्देशक थे। एक नियंत्रण रण निति [containment strategy] सोविएत रशिया के ख़िलाफ़ बनाई गई और एक नियंत्रण रण निति अंतर्राष्ट्रीय इस्स्लामी उम्माह केखिलाफ बनाई गई|
अंतर्राष्ट्रीय मार्क्सवाद और अंतर्राष्ट्रीय उम्माह ही - उस वक्त पश्चिमी सभ्यता के लिए सबसे बड़ा खतरा और चुनौतीथे। अंतर्राष्ट्रीय उम्माह को ख़त्म करने के लिए उत्तर अफ्रीका से लेकर मध्य एशिया तक के छेत्रों में सारे देश इस तरहसे काट के बनाये गए ताकि कोई भी इस्स्लामी छेत्र भविष्य में किसी भी तरह की चुनौती उनके सामने न रख सके।
सोविएत रशिया के नियंत्रण रण निति के अंतर्गत हिन्दुस्थान के मुस्लिम बहुल छेत्रों को काटकर पाकिस्तान बनानेका फैसला लिया गया। [पढिये - The Shadow of the Great Game by Narendra Singh Sarila]
हिंदुस्तान की ब्रिटिश हुकूमत - तक़रीबन १८९० से ही - इस्स्लामियों के ब्लाक्क्मैल की राजनीती [Politics of blackmail] को पुरा समर्थन और बढ़ावा दे रही थी - हिन्दुस्तानी राष्ट्रवादियों को कुचलने की रण निति के तेहत।
हिन्दुस्तानी राजनीति भी १९४७ तक आकर इतनी उग्र और आक्रामक हो गई थी की हिन्दुस्तानी राष्ट्रवादियों नेइस्स्लामियों की ब्लाक्क्मैल की राजनीती को ख़त्म करने की लिए बंटवारा [partition] स्वीकार कर लिया औरपाकिस्तान की स्थापना हुई।
पश्चिमी रण निति बहुत पारदर्शी साबित हुई जब आगे चलकर सोविएत रशिया जैसे एक विराट राष्ट्र को - और उसकेसाथ अंतर्राष्ट्रीय मार्क्सवाद के सारे फर्जी दावे को - अफगानिस्तान के बंजर ज़मीन में ध्वस्त किया गया.... उसेनेस्तनाबूद किया गया।
इस जंग को - द गुड जिहाद - कहा जाता है और इसे पश्चिमी ताकतों ने पाकिस्तान के साथ मिलकर अफगानिस्तानमें लड़ा था।
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१९८९ में - जब सोविएत रशिया को ध्वस्त किया गया - तब हम इतिहास चक्र के दुसरे तरफ़ थे। हम थे उन गिने चुनेराष्ट्रों में जो की सोविएत कैंप में थे - यानी इतिहास के हारे हुए खेमे में। अमरीकी एजेन्सी - सीआईए [CIA] - अमेरिका में सबसे शक्तिशाली संस्थाओं में से एक है। सीआईए और पाकिस्तानी आर्मी के बीच एक बहुत गहरे औरअटूट सम्बन्ध - द गुड जिहाद के दिनों से चला आ रहा है। ये सम्बन्ध आज तक कायम हैं।
जब ये पुराने सीआईए के बाशिंदे - उन हसीं दिनों की याद में डूबते हैं तो एक विशेष रिश्ता और अपनापन उन्हेंपाकिस्तानी प्रतिष्ठान के प्रति होता है। और जब ये हिंदुस्तान के बारे में सोचते हैं तो उन्हें पता होता है की हम सालेसोविएत खेमे में रुस्सी के तलवे चाट रहे थे। इनकी याददाश्त बहुत तेज़ होती है।
अफगानिस्तान में तालिबान के खात्मे [जिसका जन्म पाकिस्तान ने हीं दिया है] का जंग [जो पुरी तरह से एक फर्जीजंग है - A fake war] और उभरते रशिया [Rising Russia] के बनते हुए कहानी के मद्देनज़र पश्चिमी सभ्यता कोपाकिस्तान की जरूरत आज तक ख़त्म नही हुई है। आज तक इस इस्स्लामी छेत्र का इस्तेमाल पश्चिमी ताकतें करसकती हैं अपने नए रण निति के अनुसार।
उत्तर अफ्रीका - मध्य एशिया और दक्षिण एशिया में कई ऐसे नए राष्ट्र स्थापित किए गए जो की पुरी तरह से फर्जीराष्ट्र थे। [अंग्रेज़ी में इन्हें - artificial states - कहते है]। ये देश एक पश्चिमी रण निति के अंतर्गत बनाये गए थे जोआज तक कायम है।
अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन इस नए रण निति के निर्माता और निर्देशक थे। एक नियंत्रण रण निति [containment strategy] सोविएत रशिया के ख़िलाफ़ बनाई गई और एक नियंत्रण रण निति अंतर्राष्ट्रीय इस्स्लामी उम्माह केखिलाफ बनाई गई|
अंतर्राष्ट्रीय मार्क्सवाद और अंतर्राष्ट्रीय उम्माह ही - उस वक्त पश्चिमी सभ्यता के लिए सबसे बड़ा खतरा और चुनौतीथे। अंतर्राष्ट्रीय उम्माह को ख़त्म करने के लिए उत्तर अफ्रीका से लेकर मध्य एशिया तक के छेत्रों में सारे देश इस तरहसे काट के बनाये गए ताकि कोई भी इस्स्लामी छेत्र भविष्य में किसी भी तरह की चुनौती उनके सामने न रख सके।
सोविएत रशिया के नियंत्रण रण निति के अंतर्गत हिन्दुस्थान के मुस्लिम बहुल छेत्रों को काटकर पाकिस्तान बनानेका फैसला लिया गया। [पढिये - The Shadow of the Great Game by Narendra Singh Sarila]
हिंदुस्तान की ब्रिटिश हुकूमत - तक़रीबन १८९० से ही - इस्स्लामियों के ब्लाक्क्मैल की राजनीती [Politics of blackmail] को पुरा समर्थन और बढ़ावा दे रही थी - हिन्दुस्तानी राष्ट्रवादियों को कुचलने की रण निति के तेहत।
हिन्दुस्तानी राजनीति भी १९४७ तक आकर इतनी उग्र और आक्रामक हो गई थी की हिन्दुस्तानी राष्ट्रवादियों नेइस्स्लामियों की ब्लाक्क्मैल की राजनीती को ख़त्म करने की लिए बंटवारा [partition] स्वीकार कर लिया औरपाकिस्तान की स्थापना हुई।
पश्चिमी रण निति बहुत पारदर्शी साबित हुई जब आगे चलकर सोविएत रशिया जैसे एक विराट राष्ट्र को - और उसकेसाथ अंतर्राष्ट्रीय मार्क्सवाद के सारे फर्जी दावे को - अफगानिस्तान के बंजर ज़मीन में ध्वस्त किया गया.... उसेनेस्तनाबूद किया गया।
इस जंग को - द गुड जिहाद - कहा जाता है और इसे पश्चिमी ताकतों ने पाकिस्तान के साथ मिलकर अफगानिस्तानमें लड़ा था।
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१९८९ में - जब सोविएत रशिया को ध्वस्त किया गया - तब हम इतिहास चक्र के दुसरे तरफ़ थे। हम थे उन गिने चुनेराष्ट्रों में जो की सोविएत कैंप में थे - यानी इतिहास के हारे हुए खेमे में। अमरीकी एजेन्सी - सीआईए [CIA] - अमेरिका में सबसे शक्तिशाली संस्थाओं में से एक है। सीआईए और पाकिस्तानी आर्मी के बीच एक बहुत गहरे औरअटूट सम्बन्ध - द गुड जिहाद के दिनों से चला आ रहा है। ये सम्बन्ध आज तक कायम हैं।
जब ये पुराने सीआईए के बाशिंदे - उन हसीं दिनों की याद में डूबते हैं तो एक विशेष रिश्ता और अपनापन उन्हेंपाकिस्तानी प्रतिष्ठान के प्रति होता है। और जब ये हिंदुस्तान के बारे में सोचते हैं तो उन्हें पता होता है की हम सालेसोविएत खेमे में रुस्सी के तलवे चाट रहे थे। इनकी याददाश्त बहुत तेज़ होती है।
अफगानिस्तान में तालिबान के खात्मे [जिसका जन्म पाकिस्तान ने हीं दिया है] का जंग [जो पुरी तरह से एक फर्जीजंग है - A fake war] और उभरते रशिया [Rising Russia] के बनते हुए कहानी के मद्देनज़र पश्चिमी सभ्यता कोपाकिस्तान की जरूरत आज तक ख़त्म नही हुई है। आज तक इस इस्स्लामी छेत्र का इस्तेमाल पश्चिमी ताकतें करसकती हैं अपने नए रण निति के अनुसार।